दिल्ली में पवार सोनिया से मिले मगर नहीं की सरकार के गठन पर कोई बात, उद्धव हुए परेशान
ब्यूरो प्रमुख
नई दिल्ली, 19 नवम्बर। एक कहावत है कि सारी रात रोए एक भी न मरा जो मरा था वह भी उठकर भाग गया। यह कहावत शिवसेना के नेताओं पर सटीक साबित होती हुई दीख रही है। शिवसेना के सुप्रीमों उद्धव ठाकरे यह समझ रहे थे कि भाजपा से वायदा खिलाफी के बाद वह कांग्रेस व रांकांपा से मिलकर मुख्यमंत्री का सेहरा अपने बेटे आदित्य ठाकरे के सिर पर बंधवा देने में कामयाब हो जायेंगे। उद्धव अपनी सफलता के प्रति इतने आश्वस्थ थे कि उन्होने जल्द बाजी कर कंेद्र सरकार से अपने एकमात्र मंत्री से इस्तीफा दिलाकर अपने लिए खाई खोदने का काम कर दिया।
हैरानी की बात तो यह है कि पवार के आश्वासनों पर उद्धव ने उस समय भी यकीन कर लिया जब शिवसेना के सीएम के दावे पर पवार व कांगे्रस के विधायकों की सूची राज्यपाल के पास नही पहुंची। इसके पश्चात आदित्य ठाकरे को बैरंग राजभवन से वापस लौटना पड़ा था।
उद्धव अपने अपने मंुहफट नेता संजय रावत के द्वारा भाजपा पर लगातार हमले करते रहे। जबकि भाजपा के नेताओं ने सयम रखा। भाजपा के नेताओं ने अपने पूर्व सहयोगी की तरफ से इतना होने के वाबजूद भी मुबई के मेयर पद के लिए शिवसैना का कब्जा फिर से होने के लिए उसके सामने अपना प्रत्याशी नही खड़ा नही किया है। अब इस स्थिति में शिवसेना का मेयर आसानी से निर्वाचित हो जायेगा।
शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे सोचते थे कि शरद पवार दिल्ली जाकर सोनिया गांधी से सरकार के गठन पर वार्ता कर लें्रगे। इसके बाद राज्यपाल के पास जाकर शिवसेना का मुख्यमंत्री शपथ ले लेगा तथा तीनों दलों के विधायको की सूची भी राज्यपाल को सौंप दी जायेगी। उद्धव का यह सोचना एक प्रकार से मुंगेरी लाल के हसीन सपने से किसी तरह कम भी न था। पवार दिल्ली गए तो उद्धव को उम्मीद हुई कि अब तो बात बन ही जायेगी। लेकिन पवार ने सोनिया से मिलने के बाद फरमा दिया कि उनकी सरकार के गठन पर कोई चर्चा ही नही हुई। यह खबर सुनते ही उद्धव को करारा झटका लगा है।
दरअसल पवार केवल सोनिया के संकेत की तरफ देख रहे है। वह जानते है कि सोनिया के लिए शिवसैना जैसे कट्टरवादी संगठन के साथ सरकार में शामिल होना एक प्रकार से अल्पसंख्यक मुस्लिमों के साथ विश्वासघात से किसी तरह कम न होगा। अगर कांग्रेस इस सरकार में शामिल न होकर बाहर से समर्थन करेगी तब भी मुस्लिम इसे अपने साथ विश्वासघात ही मानेंगे। अब मुस्लिमों के समर्थन के बगैर कांग्रेस किसी भी प्रदेश में जीतने की कल्पना भी नहीं कर सकती। यह तो महराष्ट्र से विजयी विधायकों का दवाब था कि जिस कारण से शिवसेना के साथ सरकार के बनाने की खबरें फैलायी गयी थी, वरना हकीकत यह थी कि सरकार बनाने की कोई मंशा ही नही थी बल्कि शिवसेना को उसकी हैसियत दिखाने की जरूरत थी जोकि अब पूरी हो चुकी है।
पवार ने दिया शिवसेना को झटका